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سورة الدخان - सूरह अद-दूखान

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آیت

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آیت : 1
حمٓ
ह़ा, मीम।
آیت : 2
وَٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُبِينِ
क़सम है स्पष्ट करने वाली पुस्तक की।
آیت : 3
إِنَّآ أَنزَلۡنَٰهُ فِي لَيۡلَةٖ مُّبَٰرَكَةٍۚ إِنَّا كُنَّا مُنذِرِينَ
निःसंदेह हमने इसे[1] एक बरकत वाली रात में उतारा है। निःसंदेह हम डराने वाले थे।
1. बरकत वाली रात से अभिप्राय "लैलतुल क़द्र" है। यह रमज़ान के महीने के अंतिम दशक की एक विषम रात्रि होती है। यहाँ आगे बताया जा रहा है कि इसी रात्रि में पूरे वर्ष होने वाले विषय का निर्णय किया जाता है। इस शुभ रात की विशेषता तथा प्रधानता के लिए सूरतुल-क़द्र देखिए। इसी शुभ रात्रि में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर क़ुरआन उतरने का आरंभ हुआ। फिर 23 वर्षों तक आवश्यकतानुसार विभिन्न समय में उतरता रहा। (देखिए : सूरतुल-बक़रह, आयत संख्या : 185)
آیت : 4
فِيهَا يُفۡرَقُ كُلُّ أَمۡرٍ حَكِيمٍ
इसी (रात) में प्रत्येक अटल मामले का निर्णय किया जाता है।
آیت : 5
أَمۡرٗا مِّنۡ عِندِنَآۚ إِنَّا كُنَّا مُرۡسِلِينَ
हमारी ओर से आदेश के कारण। निःसंदेह हम ही भेजने वाले थे।
آیت : 6
رَحۡمَةٗ مِّن رَّبِّكَۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ
आपके पालनहार की दया के कारण। निश्चय वही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
آیت : 7
رَبِّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَآۖ إِن كُنتُم مُّوقِنِينَ
जो आकाशों तथा धरती और उन दोनों के बीच मौजूद सारी चीज़ों का पालनहार है, यदि तुम विश्वास करने वाले हो।
آیت : 8
لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ يُحۡيِۦ وَيُمِيتُۖ رَبُّكُمۡ وَرَبُّ ءَابَآئِكُمُ ٱلۡأَوَّلِينَ
उसके अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं। वही जीवित करता और मारता है। तुम्हारा पालनहार तथा तुम्हारे पहले बाप-दादाओं का पालनहार है।
آیت : 9
بَلۡ هُمۡ فِي شَكّٖ يَلۡعَبُونَ
बल्कि वे संदेह में पड़े खेल रहे हैं।
آیت : 10
فَٱرۡتَقِبۡ يَوۡمَ تَأۡتِي ٱلسَّمَآءُ بِدُخَانٖ مُّبِينٖ
तो आप उस दिन की प्रतीक्षा करें, जब आकाश प्रत्यक्ष धुआँ[2] लाएगा।
2. इस प्रत्यक्ष धुएँ तथा दुःखदायी यातना की व्याख्या सह़ीह़ ह़दीस में यह आयी है कि जब मक्कावासियों ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कड़ा विरोध किया, तो आपने यह शाप दिया कि ऐ अल्लाह! उनपर सात वर्ष का अकाल भेज दे। और जब अकाल आया, तो भूख के कारण उन्हें धुआँ जैसा दिखाई देने लगा। तब उन्होंने आप से कहा कि आप अल्लाह से प्रार्थना कर दें। वह हमसे अकाल दूर कर देगा, तो हम ईमान ले आएँगे। और जब अकाल दूर हुआ तो फिर अपनी स्थिति पर लौट आए। फिर अल्लाह ने बद्र के युद्ध के दिन उनसे बदला लिया। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4821, तथा सह़ीह़ मुस्लिम : 2798)
آیت : 11
يَغۡشَى ٱلنَّاسَۖ هَٰذَا عَذَابٌ أَلِيمٞ
जो लोगों को ढाँप लेगा। यह दुःखदायी यातना है।
آیت : 12
رَّبَّنَا ٱكۡشِفۡ عَنَّا ٱلۡعَذَابَ إِنَّا مُؤۡمِنُونَ
ऐ हमारे पालनहार! हमसे यह यातना दूर कर दे। निःसंदेह हम ईमान लाने वाले हैं।
آیت : 13
أَنَّىٰ لَهُمُ ٱلذِّكۡرَىٰ وَقَدۡ جَآءَهُمۡ رَسُولٞ مُّبِينٞ
उनके लिए नसीहत कहाँ? हालाँकि, निश्चित रूप से उनके पास स्पष्ट करने वाला रसूल आ चुका।
آیت : 14
ثُمَّ تَوَلَّوۡاْ عَنۡهُ وَقَالُواْ مُعَلَّمٞ مَّجۡنُونٌ
फिर उन्होंने उससे मुँह फेर लिया और उन्होंने कहा : यह तो सिखाया हुआ है, यह पागल है।
آیت : 15
إِنَّا كَاشِفُواْ ٱلۡعَذَابِ قَلِيلًاۚ إِنَّكُمۡ عَآئِدُونَ
निःसंदेह हम इस यातना को थोड़ी देर के लिए दूर करने वाले हैं। (परंतु) निःसंदेह तुम फिर वही कुछ करने वाले हो।
آیت : 16
يَوۡمَ نَبۡطِشُ ٱلۡبَطۡشَةَ ٱلۡكُبۡرَىٰٓ إِنَّا مُنتَقِمُونَ
जिस दिन हम बड़ी पकड़[3] पकड़ेंगे, निःसंदेह हम बदला लेने वाले हैं।
3. यह बड़ी पकड़ का दिन बद्र के युद्ध का दिन है। जिसमें उनके बड़े-बड़े सत्तर प्रमुख मारे गए तथा इतनी ही संख्या में बंदी बनाए गए। और उनकी दूसरी पकड़ क़ियामत के दिन होगी, जो इससे भी बड़ी और गंभीर होगी।
آیت : 17
۞ وَلَقَدۡ فَتَنَّا قَبۡلَهُمۡ قَوۡمَ فِرۡعَوۡنَ وَجَآءَهُمۡ رَسُولٞ كَرِيمٌ
तथा निःसंदेह हमने इनसे पूर्व फ़िरऔन की जाति की परीक्षा ली तथा उनके पास एक अति सम्मानित रसूल आया।
آیت : 18
أَنۡ أَدُّوٓاْ إِلَيَّ عِبَادَ ٱللَّهِۖ إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ
यह कि अल्लाह के बंदों को मेरे हवाले कर दो। निश्चय मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।

آیت : 19
وَأَن لَّا تَعۡلُواْ عَلَى ٱللَّهِۖ إِنِّيٓ ءَاتِيكُم بِسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٖ
तथा यह कि अल्लाह के मुक़ाबले में सरकशी न करो, निःसंदेह मैं तुम्हारे पास स्पष्ट प्रमाण लाने वाला हूँ।
آیت : 20
وَإِنِّي عُذۡتُ بِرَبِّي وَرَبِّكُمۡ أَن تَرۡجُمُونِ
तथा निःसंदेह मैंने अपने पालनहार तथा तुम्हारे पालनहार की इससे शरण ली है कि तुम मुझपर पथराव कर मेरी जान ले लो।
آیت : 21
وَإِن لَّمۡ تُؤۡمِنُواْ لِي فَٱعۡتَزِلُونِ
और अगर तुम मेरी बात नहीं मानते, तो मुझसे दूर रहो।
آیت : 22
فَدَعَا رَبَّهُۥٓ أَنَّ هَٰٓؤُلَآءِ قَوۡمٞ مُّجۡرِمُونَ
अंततः उसने अपने पालनहार को पुकारा कि निःसंदेह ये अपराधी लोग हैं।
آیت : 23
فَأَسۡرِ بِعِبَادِي لَيۡلًا إِنَّكُم مُّتَّبَعُونَ
अतः तुम मेरे बंदों को लेकर रातों-रात चले जाओ। निःसंदेह तुम्हारा पीछा किया जाएगा।
آیت : 24
وَٱتۡرُكِ ٱلۡبَحۡرَ رَهۡوًاۖ إِنَّهُمۡ جُندٞ مُّغۡرَقُونَ
तथा सागर को अपनी दशा पर ठहरा हुआ छोड़ दे। निःसंदेह वे एक ऐसी सेना हैं, जो डुबोए जाने वाले हैं।
آیت : 25
كَمۡ تَرَكُواْ مِن جَنَّٰتٖ وَعُيُونٖ
वे कितने ही बाग़ और जल स्रोत छोड़ गए।
آیت : 26
وَزُرُوعٖ وَمَقَامٖ كَرِيمٖ
तथा खेतियाँ और बढ़िया स्थान।
آیت : 27
وَنَعۡمَةٖ كَانُواْ فِيهَا فَٰكِهِينَ
तथा सुख-सामग्री, जिनमें वे आनंद ले रहे थे।
آیت : 28
كَذَٰلِكَۖ وَأَوۡرَثۡنَٰهَا قَوۡمًا ءَاخَرِينَ
ऐसा ही हुआ और हमने उनका उत्तराधिकारी दूसरे[4] लोगों को बना दिया।
4. अर्थात बनी इसराईल (याक़ूब अलैहिस्सलाम की संतान) को।
آیت : 29
فَمَا بَكَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلسَّمَآءُ وَٱلۡأَرۡضُ وَمَا كَانُواْ مُنظَرِينَ
फिर न उनपर आकाश और धरती रोए और न वे मोहलत पाने वाले हुए।
آیت : 30
وَلَقَدۡ نَجَّيۡنَا بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ مِنَ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡمُهِينِ
तथा निःसंदेह हमने इसराईल की संतान को अपमानकारी यातना से बचा लिया।
آیت : 31
مِن فِرۡعَوۡنَۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَالِيٗا مِّنَ ٱلۡمُسۡرِفِينَ
फ़िरऔन से। निःसंदेह वह हद से बढ़ने वालों में से एक सरकश व्यक्ति था।
آیت : 32
وَلَقَدِ ٱخۡتَرۡنَٰهُمۡ عَلَىٰ عِلۡمٍ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ
तथा निःसंदेह हमने उन्हें ज्ञान के आधार पर संसार वासियों पर चुन लिया।
آیت : 33
وَءَاتَيۡنَٰهُم مِّنَ ٱلۡأٓيَٰتِ مَا فِيهِ بَلَٰٓؤٞاْ مُّبِينٌ
तथा हमने उन्हें ऐसी निशानियाँ प्रदान कीं, जिनमें खुली परीछा थी।
آیت : 34
إِنَّ هَٰٓؤُلَآءِ لَيَقُولُونَ
निःसंदेह ये[5] लोग निश्चय कहते हैं।
5. अर्थात मक्का के मुश्रिक कहते हैं कि सांसारिक जीवन ही अंतिम जीवन है। इसके पश्चात् परलोक का जीवन नहीं है।
آیت : 35
إِنۡ هِيَ إِلَّا مَوۡتَتُنَا ٱلۡأُولَىٰ وَمَا نَحۡنُ بِمُنشَرِينَ
कि हमारी इस पहली मृत्यु के सिवा कोई (मृत्यु) नहीं, और न हम कभी दोबारा उठाए जाएँगे।
آیت : 36
فَأۡتُواْ بِـَٔابَآئِنَآ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
तो तुम हमारे बाप-दादा को ले आओ, यदि तुम सच्चे हो?
آیت : 37
أَهُمۡ خَيۡرٌ أَمۡ قَوۡمُ تُبَّعٖ وَٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ أَهۡلَكۡنَٰهُمۡۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ مُجۡرِمِينَ
क्या ये लोग बेहतर हैं, अथवा तुब्बा' की जाति[6] तथा वे लोग जो उनसे पूर्व थे? हमने उन्हें विनष्ट कर दिया। निःसंदेह वे अपराधी थे।
6. तुब्बा' की जाति से अभिप्राय यमन की जाति सबा है। जिसके विनाश का वर्णन सूरत सबा में किया गया है। तुब्बा' ह़िम्यर जाति के शासकों की उपाधि थी जिसे उनकी अवज्ञा के कारण ध्वस्त कर दिया गया। (देखिए : सूरत सबा की आयत : 15 से 19 तक।)
آیت : 38
وَمَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَا لَٰعِبِينَ
और हमने आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है, खेलते हुए नहीं बनाया है।
آیت : 39
مَا خَلَقۡنَٰهُمَآ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
हमने उन दोनों को सत्य ही के साथ पैदा किया है, किंतु उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते।

آیت : 40
إِنَّ يَوۡمَ ٱلۡفَصۡلِ مِيقَٰتُهُمۡ أَجۡمَعِينَ
निश्चय फ़ैसले[7] का दिन उन सब का नियत समय है।
7. अर्थात आकाशों तथा धरती की रचना लोगों की परीक्षा के लिए की गई है। और परीक्षा फल के लिए प्रलय का समय निर्धारित कर दिया गया है।
آیت : 41
يَوۡمَ لَا يُغۡنِي مَوۡلًى عَن مَّوۡلٗى شَيۡـٔٗا وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ
जिस दिन कोई साथी किसी साथी के कुछ काम न आएगा और न उनकी सहायता की जाएगी।
آیت : 42
إِلَّا مَن رَّحِمَ ٱللَّهُۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ
किंतु जिसपर अल्लाह ने दया की, निःसंदेह वही सबपर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान है।
آیت : 43
إِنَّ شَجَرَتَ ٱلزَّقُّومِ
निःसंदेह ज़क़्क़ूम (थूहड़) का वृक्ष।
آیت : 44
طَعَامُ ٱلۡأَثِيمِ
पापी का भोजन है।
آیت : 45
كَٱلۡمُهۡلِ يَغۡلِي فِي ٱلۡبُطُونِ
पिघले हुए ताँबे (या तलछट) की तरह, पेटों में खौलता है।
آیت : 46
كَغَلۡيِ ٱلۡحَمِيمِ
गर्म पानी के खौलने की तरह।
آیت : 47
خُذُوهُ فَٱعۡتِلُوهُ إِلَىٰ سَوَآءِ ٱلۡجَحِيمِ
इसे पकड़ो, फिर इसे धधकती आग के बीच तक घसीटकर ले जाओ।
آیت : 48
ثُمَّ صُبُّواْ فَوۡقَ رَأۡسِهِۦ مِنۡ عَذَابِ ٱلۡحَمِيمِ
फिर खौलते हुए पानी की कुछ यातना उसके सिर पर उँडेल दो।[8]
8. ह़दीस में है कि इससे जो कुछ उसके भीतर होगा पिघलकर दोनों पाँव के बीच से निकल जाएगा, फिर उसे अपनी पहली दशा पर कर दिया जाएगा। (तिर्मिज़ी : 2582, इस ह़दीस की सनद हसन है।)
آیت : 49
ذُقۡ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡكَرِيمُ
चख, निःसंदेह तू ही वह व्यक्ति है जो बड़ा बलशाली और सम्माननीय है।
آیت : 50
إِنَّ هَٰذَا مَا كُنتُم بِهِۦ تَمۡتَرُونَ
निःसंदे यह वही है जिसके बारे में तुम संदेह करते थे।
آیت : 51
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي مَقَامٍ أَمِينٖ
निःसंदेह परहेज़गार लोग शांति एवं सुरक्षा वाली जगह में होंगे।
آیت : 52
فِي جَنَّٰتٖ وَعُيُونٖ
बाग़ों तथा जल स्रोतों में।
آیت : 53
يَلۡبَسُونَ مِن سُندُسٖ وَإِسۡتَبۡرَقٖ مُّتَقَٰبِلِينَ
वे बारीक और गाढ़े रेशम के वस्त्र पहनेंगे, आमने-सामने बैठे होंगे।
آیت : 54
كَذَٰلِكَ وَزَوَّجۡنَٰهُم بِحُورٍ عِينٖ
ऐसा ही होगा और हम उनका विवाह गोरे बदन, काली आँखों वाली औरतों से कर देंगे, जो बड़ी-बड़ी आँखों वाली होंगी।
آیت : 55
يَدۡعُونَ فِيهَا بِكُلِّ فَٰكِهَةٍ ءَامِنِينَ
वे उसमें निश्चिंत होकर हर प्रकार के फल मंगवाएँगे।
آیت : 56
لَا يَذُوقُونَ فِيهَا ٱلۡمَوۡتَ إِلَّا ٱلۡمَوۡتَةَ ٱلۡأُولَىٰۖ وَوَقَىٰهُمۡ عَذَابَ ٱلۡجَحِيمِ
वे उसमें मृत्यु[9] का स्वाद नहीं चखेंगे, परंतु वह मृत्यु जो पहली थी, और वह (अल्लाह) उन्हें दहकती हुई आग के अज़ाब से बचा लेगा।
9. ह़दीस में है कि जब स्वर्गी स्वर्ग में और नारकी नरक में चले जाएँगे, तो मौत को स्वर्ग और नरक के बीच लाकर वध कर दिया जाएगा। और एलान कर दिया जाएगा कि अब मौत नहीं होगी। जिससे स्वर्गी प्रसन्न हो जाएँगे और नारकियों को शोक पर शोक हो जाएगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 6548, सह़ीह़ मुस्लिम : 2850)
آیت : 57
فَضۡلٗا مِّن رَّبِّكَۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ
आपके पालनहार की ओर से अनुग्रह के कारण। यही बहुत बड़ी सफलता है।
آیت : 58
فَإِنَّمَا يَسَّرۡنَٰهُ بِلِسَانِكَ لَعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ
सो तथ्य यही है कि हमने इसे आपकी भाषा में आसान कर दिया है, ताकि वे नसीहत ग्रहण करें।
آیت : 59
فَٱرۡتَقِبۡ إِنَّهُم مُّرۡتَقِبُونَ
अतः आप प्रतीक्षा करें,[10] निःसंदेह वे भी प्रतीक्षा करने वाले हैं।
10. अर्थात परिणाम की।
په کامیابۍ سره ولیږل شو