ترجمهٔ معانی قرآن کریم

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سورة الغاشية - सूरह अल-गाशिया

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آیه : 1
هَلۡ أَتَىٰكَ حَدِيثُ ٱلۡغَٰشِيَةِ
क्या तेरे पास ढाँपने लेने वाली (क़ियामत) की ख़बर पहुँची?
آیه : 2
وُجُوهٞ يَوۡمَئِذٍ خَٰشِعَةٌ
उस दिन कई चेहरे अपमानित होंगे।
آیه : 3
عَامِلَةٞ نَّاصِبَةٞ
कठिन परिश्रम करने वाले, थक जाने वाले।
آیه : 4
تَصۡلَىٰ نَارًا حَامِيَةٗ
वे गर्म धधकती आग में प्रवेश करेंगे।
آیه : 5
تُسۡقَىٰ مِنۡ عَيۡنٍ ءَانِيَةٖ
उन्हें खौलते सोते का जल पिलाया जाएगा।
آیه : 6
لَّيۡسَ لَهُمۡ طَعَامٌ إِلَّا مِن ضَرِيعٖ
उनके लिए कांटेदार झाड़ के सिवा कोई खाना नहीं होगा।
آیه : 7
لَّا يُسۡمِنُ وَلَا يُغۡنِي مِن جُوعٖ
जो न मोटा करेगा और न भूख मिटाएगा।[1]
1. (1-7) इन आयतों में सबसे पहले सांसारिक स्वार्थ में मग्न इनसानों को एक प्रश्न द्वारा सावधान किया गया है कि उसे उस समय की सूचना है जब एक आपदा समस्त संसार पर छा जाएगी? फिर इसी के साथ यह विवरण भी दिया गया है कि उस समय इनसानों के दो भेद हो जाएँगे, और दोनों के प्रतिफल भी भिन्न होंगे : एक नरक में तथा दूसरा स्वर्ग में जाएगा। तीसरी आयत में "नासिबह" का शब्द आया है जिसका अर्थ है, थक कर चूर हो जाना, अर्थात काफ़िरों को क़ियामत के दिन इतनी कड़ी यातना दी जाएगी कि उनकी दशा बहुत ख़राब हो जाएगी। और वे थके-थके से दिखाई देंगे। इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि उन्होंने संसार में बहुत-से कर्म किए होंगे, परंतु वे सत्य धर्म के अनुसार नहीं होंगे, इसलिए वे उपासना और कड़ी तपस्या करके भी नरक में जाएँगे। क्योंकि सत्य आस्था के बिना कोई कर्म मान्य नहीं होगा।
آیه : 8
وُجُوهٞ يَوۡمَئِذٖ نَّاعِمَةٞ
उस दिन कई चेहरे प्रफुल्लित होंगे।
آیه : 9
لِّسَعۡيِهَا رَاضِيَةٞ
अपने प्रयास पर प्रसन्न होंगे।
آیه : 10
فِي جَنَّةٍ عَالِيَةٖ
ऊँची जन्नत में होंगे।
آیه : 11
لَّا تَسۡمَعُ فِيهَا لَٰغِيَةٗ
उसमें कोई बेकार (अशिष्ट) बात नहीं सुनेंगे।
آیه : 12
فِيهَا عَيۡنٞ جَارِيَةٞ
उसमें बहने वाले स्रोत (चश्मे) हैं।
آیه : 13
فِيهَا سُرُرٞ مَّرۡفُوعَةٞ
उसमें ऊँचे-ऊँचे तख्त हैं।
آیه : 14
وَأَكۡوَابٞ مَّوۡضُوعَةٞ
और (पीने वालों के लिए तैयार) रखे हुए प्याले हैं।
آیه : 15
وَنَمَارِقُ مَصۡفُوفَةٞ
और क्रम में लगे हुए गाव-तकिए हैं।
آیه : 16
وَزَرَابِيُّ مَبۡثُوثَةٌ
और बिछाए हुए क़ालीन हैं।[2]
2. (8-16) इन आयतों में जो इस संसार में सत्य आस्था के साथ क़ुरआन आदेशानुसार जीवन व्यतीत कर रहे हैं परलोक में उनके सदा के सुख का दृश्य दिखाया गया है।
آیه : 17
أَفَلَا يَنظُرُونَ إِلَى ٱلۡإِبِلِ كَيۡفَ خُلِقَتۡ
क्या वे ऊँटों को नहीं देखते कि वे कैसे पैदा किए गए हैं?
آیه : 18
وَإِلَى ٱلسَّمَآءِ كَيۡفَ رُفِعَتۡ
और आकाश को (नहीं देखते) कि उसे कैसे ऊँचा किया गया?
آیه : 19
وَإِلَى ٱلۡجِبَالِ كَيۡفَ نُصِبَتۡ
और पर्वतों को (नहीं देखते) कि कैसे गाड़े गए हैं?
آیه : 20
وَإِلَى ٱلۡأَرۡضِ كَيۡفَ سُطِحَتۡ
तथा धरती को (नहीं देखते) कि कैसे बिछाई गई है?[3]
3. (17-20) इन आयतों में फिर विषय बदल कर एक प्रश्न किया जा रहा है कि जो क़ुरआन की शिक्षा तथा परलोक की सूचना को नहीं मानते, अपने सामने उन चीज़ों को नहीं देखते जो रात दिन उनके सामने आती रहती हैं, ऊँटों तथा पर्वतों और आकाश एवं धरती पर विचार क्यों नहीं करते कि क्या ये सब अपने आप पैदा हो गए हैं या इनका कोई रचयिता है? यह तो असंभव है कि रचना हो और रचयिता न हो। यदि मानते हैं कि किसी शक्ति ने इनको बनाया है जिसका कोई साझी नहीं तो उसके अकेले पूज्य होने और उसके फिर से पैदा करने की शक्ति और सामर्थ्य का क्यों इनकार करते हैं? (तर्जुमानुल क़ुरआन)
آیه : 21
فَذَكِّرۡ إِنَّمَآ أَنتَ مُذَكِّرٞ
अतः आप नसीहत करें, आप केवल नसीहत करने वाले हैं।
آیه : 22
لَّسۡتَ عَلَيۡهِم بِمُصَيۡطِرٍ
आप उनपर कोई दरोग़ा (नियंत्रक) नहीं हैं।
آیه : 23
إِلَّا مَن تَوَلَّىٰ وَكَفَرَ
परंतु जिसने मुँह फेरा और कुफ़्र किया।
آیه : 24
فَيُعَذِّبُهُ ٱللَّهُ ٱلۡعَذَابَ ٱلۡأَكۡبَرَ
तो अल्लाह उसे सबसे बड़ी यातना देगा।
آیه : 25
إِنَّ إِلَيۡنَآ إِيَابَهُمۡ
निःसंदेह हमारी ही ओर उनका लौटकर आना है।
آیه : 26
ثُمَّ إِنَّ عَلَيۡنَا حِسَابَهُم
फिर बेशक हमारे ही ज़िम्मे उनका ह़िसाब लेना है।[4]
4. (21-26) इन आयतों का भावार्थ यह है कि क़ुरआन किसी को बलपूर्वक मनवाने के लिए नहीं है, और न नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह कर्तव्य है कि किसी को बलपूर्वक मनवाएँ। आप जिससे डरा रहे हैं, ये मानें या न मानें, वह खुली बात है। फिर भी जो नहीं सुनते उनको अल्लाह ही समझेगा। ये और इस जैसी क़ुरआन की अनेक आयतें इस आरोप का खंडन करती हैं कि इस्लाम ने अपने मनवाने के लिए अस्त्र शस्त्र का प्रयोग किया है।
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