क़ुरआन के अर्थों का अनुवाद

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سورة النازعات - सूरह अल-नाज़ियात

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आयत : 1
وَٱلنَّٰزِعَٰتِ غَرۡقٗا
क़सम है उन फ़रिश्तों की, जो डूबकर सख़्ती से (प्राण) खींचने वाले हैं!
आयत : 2
وَٱلنَّٰشِطَٰتِ نَشۡطٗا
और क़सम है उन फ़रिश्तों की, जो आसानी से (प्राण) निकालने वाले हैं!
आयत : 3
وَٱلسَّٰبِحَٰتِ سَبۡحٗا
और क़सम है उन फ़रिश्तों की, जो तेज़ी से तैरने वाले हैं!
आयत : 4
فَٱلسَّٰبِقَٰتِ سَبۡقٗا
फिर क़सम है उन फ़रिश्तों की, जो दौड़कर आगे बढ़ने वाले हैं!
आयत : 5
فَٱلۡمُدَبِّرَٰتِ أَمۡرٗا
फिर क़सम है उन फ़रिश्तों की, जो आदेश को क्रियान्वित करने वाले हैं![1]
1. (1-5) यहाँ से बताया गया है कि प्रलय का आरंभ भारी भूकंप से होगा और दूसरे ही क्षण सब जीवित होकर धरती के ऊपर होंगे।
आयत : 6
يَوۡمَ تَرۡجُفُ ٱلرَّاجِفَةُ
जिस दिन काँपने वाली (अर्थात् धरती) काँप उठेगी।
आयत : 7
تَتۡبَعُهَا ٱلرَّادِفَةُ
उसके पीछे आएगी पीछे आने वाली।
आयत : 8
قُلُوبٞ يَوۡمَئِذٖ وَاجِفَةٌ
उस दिन कई दिल धड़कने वाले होंगे।
आयत : 9
أَبۡصَٰرُهَا خَٰشِعَةٞ
उनकी आँखें झुकी हुई होंगी।
आयत : 10
يَقُولُونَ أَءِنَّا لَمَرۡدُودُونَ فِي ٱلۡحَافِرَةِ
वे कहते हैं : क्या हम निश्चय पहली स्थिति में लौटाए जाने वाले हैं?
आयत : 11
أَءِذَا كُنَّا عِظَٰمٗا نَّخِرَةٗ
क्या जब हम सड़ी-गली हड्डियाँ हो जाएँगे?
आयत : 12
قَالُواْ تِلۡكَ إِذٗا كَرَّةٌ خَاسِرَةٞ
उन्होंने कहा : यह तो उस समय घाटे वाला लौटना होगा।
आयत : 13
فَإِنَّمَا هِيَ زَجۡرَةٞ وَٰحِدَةٞ
वह तो केवल एक डाँट होगी।
आयत : 14
فَإِذَا هُم بِٱلسَّاهِرَةِ
फिर एकाएक वे (जीवित होकर) धरती के ऊपर होंगे।
आयत : 15
هَلۡ أَتَىٰكَ حَدِيثُ مُوسَىٰٓ
(ऐ नबी!) क्या आपके पास मूसा की बात पहुँची है?[2]
2. (6-15) इन आयतों में प्रलय दिवस का चित्र पेश किया गया है। और काफ़िरों की स्थिति बताई गई है कि वे उस दिन किस प्रकार अपने आपको एक खुले मैदान में पाएँगे।

आयत : 16
إِذۡ نَادَىٰهُ رَبُّهُۥ بِٱلۡوَادِ ٱلۡمُقَدَّسِ طُوًى
जब उसके पालनहार ने उसे पवित्र घाटी 'तुवा' में पुकारा।
आयत : 17
ٱذۡهَبۡ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ إِنَّهُۥ طَغَىٰ
फ़िरऔन के पास जाओ, निश्चय वह हद से बढ़ गया है।
आयत : 18
فَقُلۡ هَل لَّكَ إِلَىٰٓ أَن تَزَكَّىٰ
फिर उससे कहो : क्या तुझे इस बात की इच्छा है कि तू पवित्र हो जाए?
आयत : 19
وَأَهۡدِيَكَ إِلَىٰ رَبِّكَ فَتَخۡشَىٰ
और मैं तेरे पालनहार की ओर तेरा मार्गदर्शन करूँ, तो तू डर जाए?
आयत : 20
فَأَرَىٰهُ ٱلۡأٓيَةَ ٱلۡكُبۡرَىٰ
फिर उसे सबसे बड़ी निशानी (चमत्कार) दिखाई।
आयत : 21
فَكَذَّبَ وَعَصَىٰ
तो उसने झुठला दिया और अवज्ञा की।
आयत : 22
ثُمَّ أَدۡبَرَ يَسۡعَىٰ
फिर वह पलटा (मूसा अलैहिस्सलाम के विरोध का) प्रयास करते हुए।
आयत : 23
فَحَشَرَ فَنَادَىٰ
फिर उसने (लोगों को) एकत्रित किया। फिर पुकारा।
आयत : 24
فَقَالَ أَنَا۠ رَبُّكُمُ ٱلۡأَعۡلَىٰ
तो उसने कहा : मैं तुम्हारा सबसे ऊँचा पालनहार हूँ।
आयत : 25
فَأَخَذَهُ ٱللَّهُ نَكَالَ ٱلۡأٓخِرَةِ وَٱلۡأُولَىٰٓ
तो अल्लाह ने उसे आख़िरत और दुनिया की यातना में पकड़ लिया।
आयत : 26
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبۡرَةٗ لِّمَن يَخۡشَىٰٓ
निःसंदेह इसमें उस व्यक्ति के लिए शिक्षा है, जो डरता है।
आयत : 27
ءَأَنتُمۡ أَشَدُّ خَلۡقًا أَمِ ٱلسَّمَآءُۚ بَنَىٰهَا
क्या तुम्हें पैदा करना अधिक कठिन है या आकाश को, जिसे उसने बनाया।[3]
3. (16-27) यहाँ से प्रलय के होने और पुनः जीवित करने के तर्क आकाश तथा धरती की रचना से दिए जा रहे हैं कि जिस शक्ति ने यह सब बनाया और तुम्हारे जीवन रक्षा की व्यवस्था की है, प्रलय करना और फिर सब को जीवित करना उसके लिए असंभव कैसे हो सकता है? तुम स्वयं विचार करके निर्णय करो।
आयत : 28
رَفَعَ سَمۡكَهَا فَسَوَّىٰهَا
उसकी छत को ऊँचा किया, फिर उसे बराबर किया।
आयत : 29
وَأَغۡطَشَ لَيۡلَهَا وَأَخۡرَجَ ضُحَىٰهَا
और उसकी रात को अंधेरा कर दिया तथा उसके दिन के प्रकाश को प्रकट कर दिया।
आयत : 30
وَٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ ذَٰلِكَ دَحَىٰهَآ
और उसके बाद धरती को बिछाया।
आयत : 31
أَخۡرَجَ مِنۡهَا مَآءَهَا وَمَرۡعَىٰهَا
उससे उसका पानी और उसका चारा निकाला।
आयत : 32
وَٱلۡجِبَالَ أَرۡسَىٰهَا
और पर्वतों को गाड़ दिया।
आयत : 33
مَتَٰعٗا لَّكُمۡ وَلِأَنۡعَٰمِكُمۡ
तुम्हारे तथा तुम्हारे पशुओं के लाभ के लिए।
आयत : 34
فَإِذَا جَآءَتِ ٱلطَّآمَّةُ ٱلۡكُبۡرَىٰ
फिर जब बड़ी आपदा (क़ियामत) आ जाएगी।[4]
4. (28-34) 'बड़ी आपदा' प्रलय को कहा गया है जो उसकी घोर स्थिति का चित्रण है।
आयत : 35
يَوۡمَ يَتَذَكَّرُ ٱلۡإِنسَٰنُ مَا سَعَىٰ
जिस दिन इनसान अपने किए को याद करेगा।[5]
5. (35) यह प्रलय का तीसरा चरण होगा जबकि वह सामने होगी। उस दिन प्रत्येक व्यक्ति को अपने सांसारिक कर्म याद आएँगे और कर्मानुसार जिसने सत्य धर्म की शिक्षा का पालन किया होगा उसे स्वर्ग का सुख मिलेगा और जिसने सत्य धर्म और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नकारा और मनमानी धर्म और कर्म किया होगा वह नरक का स्थायी दुःख भोगेगा।
आयत : 36
وَبُرِّزَتِ ٱلۡجَحِيمُ لِمَن يَرَىٰ
और देखने वाले के लिए जहन्नम सामने कर दी जाएगी।
आयत : 37
فَأَمَّا مَن طَغَىٰ
तो जो व्यक्ति हद से बढ़ गया।
आयत : 38
وَءَاثَرَ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا
और उसने सांसारिक जीवन को वरीयता दी।
आयत : 39
فَإِنَّ ٱلۡجَحِيمَ هِيَ ٱلۡمَأۡوَىٰ
तो निःसंदेह जहन्नम ही उसका ठिकाना है।
आयत : 40
وَأَمَّا مَنۡ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِۦ وَنَهَى ٱلنَّفۡسَ عَنِ ٱلۡهَوَىٰ
लेकिन जो अपने पालनहार के समक्ष खड़ा होने से डर गया तथा अपने मन को बुरी इच्छा से रोक लिया।
आयत : 41
فَإِنَّ ٱلۡجَنَّةَ هِيَ ٱلۡمَأۡوَىٰ
तो निःसंदेह जन्नत ही उसका ठिकाना है।
आयत : 42
يَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلسَّاعَةِ أَيَّانَ مُرۡسَىٰهَا
वे आपसे क़ियामत के बारे में पूछते हैं कि वह कब घटित होगी?[6]
6. (42) काफ़िरों का यह प्रश्न समय जानने के लिए नहीं, बल्कि हँसी उड़ाने के लिए था।
आयत : 43
فِيمَ أَنتَ مِن ذِكۡرَىٰهَآ
आपका उसके उल्लेख करने से क्या संबंध है?
आयत : 44
إِلَىٰ رَبِّكَ مُنتَهَىٰهَآ
उस (के ज्ञान) की अंतिमता तुम्हारे पालनहार ही की ओर है।
आयत : 45
إِنَّمَآ أَنتَ مُنذِرُ مَن يَخۡشَىٰهَا
आप तो केवल उसे डराने वाले हैं, जो उससे डरता है।[7]
7. (45) इस आयत में कहा गया है कि (ऐ नबी!) सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आप का दायित्व मात्र उस दिन से सावधान करना है। धर्म बलपूर्वक मनवाने के लिए नहीं। जो नहीं मानेगा, उसे स्वयं उस दिन समझ में आ जाएगा कि उसने क्षण भर के सांसारिक जीवन के स्वार्थ के लिए अपना स्थायी सुख खो दिया। और उस समय पछतावे का कुछ लाभ नहीं होगा।
आयत : 46
كَأَنَّهُمۡ يَوۡمَ يَرَوۡنَهَا لَمۡ يَلۡبَثُوٓاْ إِلَّا عَشِيَّةً أَوۡ ضُحَىٰهَا
जिस दिन वे उसे देखेंगे, तो (ऐसा लगेगा) मानो वे (दुनिया में) केवल एक शाम या उसकी सुबह ही ठहरे हैं।
सफलतापूर्वक भेजा गया