Terjemahan makna Alquran Alkarim

Terjemahan Berbahasa India

Scan the qr code to link to this page

سورة النبأ - सूरह अल-नबा

Nomor Halaman

Ayah

Tampilkan teks ayat
Tampilkan catatan kaki
Share this page

Ayah : 1
عَمَّ يَتَسَآءَلُونَ
वे आपस में किस चीज़ के विषय में प्रश्न कर रहे हैं?
Ayah : 2
عَنِ ٱلنَّبَإِ ٱلۡعَظِيمِ
बहुत बड़ी सूचना के विषय में।
Ayah : 3
ٱلَّذِي هُمۡ فِيهِ مُخۡتَلِفُونَ
जिसमें वे मतभेद करने वाले हैं।
Ayah : 4
كَلَّا سَيَعۡلَمُونَ
हरगिज़ नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे।
Ayah : 5
ثُمَّ كَلَّا سَيَعۡلَمُونَ
फिर हरगिज़ नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे।[1]
1. (1-5) इन आयतों में उनको धिक्कारा गया है, जो प्रलय की हँसी उड़ाते हैं। जैसे उनके लिए प्रलय की सूचना किसी गंभीर चिंता के योग्य नहीं। परंतु वह दिन दूर नहीं जब प्रलय उनके आगे आ जाएगी और वे विश्व विधाता के सामने उत्तरदायित्व के लिए उपस्थित होंगे।
Ayah : 6
أَلَمۡ نَجۡعَلِ ٱلۡأَرۡضَ مِهَٰدٗا
क्या हमने धरती को बिछौना नहीं बनाया?
Ayah : 7
وَٱلۡجِبَالَ أَوۡتَادٗا
और पर्वतों को मेखें?
Ayah : 8
وَخَلَقۡنَٰكُمۡ أَزۡوَٰجٗا
तथा हमने तुम्हें जोड़े-जोड़े पैदा किया।
Ayah : 9
وَجَعَلۡنَا نَوۡمَكُمۡ سُبَاتٗا
तथा हमने तुम्हारी नींद को आराम (का साधन) बनाया।
Ayah : 10
وَجَعَلۡنَا ٱلَّيۡلَ لِبَاسٗا
और हमने रात को आवरण बनाया।
Ayah : 11
وَجَعَلۡنَا ٱلنَّهَارَ مَعَاشٗا
और हमने दिन को कमाने के लिए बनाया।
Ayah : 12
وَبَنَيۡنَا فَوۡقَكُمۡ سَبۡعٗا شِدَادٗا
तथा हमने तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत (आकाश) बनाए।
Ayah : 13
وَجَعَلۡنَا سِرَاجٗا وَهَّاجٗا
और हमने एक प्रकाशमान् तप्त दीप (सूर्य) बनाया।
Ayah : 14
وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلۡمُعۡصِرَٰتِ مَآءٗ ثَجَّاجٗا
और हमने बदलियों से मूसलाधार पानी उतारा।
Ayah : 15
لِّنُخۡرِجَ بِهِۦ حَبّٗا وَنَبَاتٗا
ताकि हम उसके द्वारा अन्न और वनस्पति उगाएँ।
Ayah : 16
وَجَنَّٰتٍ أَلۡفَافًا
और घने-घने बाग़।[2]
2. (6-16) इन आयतों में अल्लाह की शक्ति और प्रतिपालन (रूबूबिय्यत) के लक्षण दर्शाए गए हैं, जो यह साक्ष्य देते हैं कि प्रतिकार (बदले) का दिन आवश्यक है, क्योंकि जिसके लिए इतनी बड़ी व्यवस्था की गई हो और उसे कर्मों के अधिकार भी दिए गए हों, तो उसके कर्मों का पुरस्कार या दंड तो मिलना ही चाहिए।
Ayah : 17
إِنَّ يَوۡمَ ٱلۡفَصۡلِ كَانَ مِيقَٰتٗا
निःसंदेह निर्णय (फ़ैसले) का दिन एक नियत समय है।
Ayah : 18
يَوۡمَ يُنفَخُ فِي ٱلصُّورِ فَتَأۡتُونَ أَفۡوَاجٗا
जिस दिन सूर में फूँक मारी जाएगी, तो तुम दल के दल चले आओगे।
Ayah : 19
وَفُتِحَتِ ٱلسَّمَآءُ فَكَانَتۡ أَبۡوَٰبٗا
और आकाश खोल दिया जाएगा, तो उसमें द्वार ही द्वार हो जाएँगे।
Ayah : 20
وَسُيِّرَتِ ٱلۡجِبَالُ فَكَانَتۡ سَرَابًا
और पर्वत चलाए जाएँगे, तो वे मरीचिका बन जाएँगे।[3]
3. (17-20) इन आयतों में बताया जा रहा है कि निर्णय का दिन अपने निश्चित समय पर आकर रहेगा, उस दिन आकाश तथा धरती में एक बड़ी उथल-पुथल होगी। इसके लिए सूर में एक फूँक मारने की देर है। फिर जिसकी सूचना दी जा रही है तुम्हारे सामने आ जाएगी। तुम्हारे मानने या न मानने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। और सब अपना ह़िसाब देने के लिए अल्लाह के न्यायालय की ओर चल पड़ेंगे।
Ayah : 21
إِنَّ جَهَنَّمَ كَانَتۡ مِرۡصَادٗا
निःसंदेह जहन्नम घात में है।
Ayah : 22
لِّلطَّٰغِينَ مَـَٔابٗا
सरकशों का ठिकाना है।
Ayah : 23
لَّٰبِثِينَ فِيهَآ أَحۡقَابٗا
जिसमें वे अनगिनत वर्षों तक रहेंगे।
Ayah : 24
لَّا يَذُوقُونَ فِيهَا بَرۡدٗا وَلَا شَرَابًا
वे उसमें न कोई ठंड चखेंगे और न पीने की चीज़।
Ayah : 25
إِلَّا حَمِيمٗا وَغَسَّاقٗا
सिवाय अत्यंत गर्म पानी और बहती पीप के।
Ayah : 26
جَزَآءٗ وِفَاقًا
यह पूरा-पूरा बदला है।
Ayah : 27
إِنَّهُمۡ كَانُواْ لَا يَرۡجُونَ حِسَابٗا
निःसंदेह वे हिसाब से नहीं डरते थे।
Ayah : 28
وَكَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا كِذَّابٗا
तथा उन्होंने हमारी आयतों को बुरी तरह झुठलाया।
Ayah : 29
وَكُلَّ شَيۡءٍ أَحۡصَيۡنَٰهُ كِتَٰبٗا
और हमने हर चीज़ को लिखकर संरक्षित कर रखा है।
Ayah : 30
فَذُوقُواْ فَلَن نَّزِيدَكُمۡ إِلَّا عَذَابًا
तो चखो, हम तुम्हारे लिए यातना ही अधिक करते रहेंगे।[4]
4. (21-30) इन आयतों में बताया गया है कि जो ह़िसाब की आशा नहीं रखते और हमारी आयतों को नहीं मानते हमने उनकी एक-एक करतूत को गिनकर अपने यहाँ लिख रखा है। और उनकी ख़बर लेने के लिए नरक घात लगाए तैयार है, जहाँ उनके कुकर्मों का भरपूर बदला दिया जाएगा।

Ayah : 31
إِنَّ لِلۡمُتَّقِينَ مَفَازًا
निःसंदेह (अल्लाह से) डरने वालों के लिए सफलता है।
Ayah : 32
حَدَآئِقَ وَأَعۡنَٰبٗا
बाग़ तथा अंगूर।
Ayah : 33
وَكَوَاعِبَ أَتۡرَابٗا
और समान उम्र वाली नवयुवतियाँ।
Ayah : 34
وَكَأۡسٗا دِهَاقٗا
और छलकते हुए प्याले।
Ayah : 35
لَّا يَسۡمَعُونَ فِيهَا لَغۡوٗا وَلَا كِذَّٰبٗا
वे उसमें न तो कोई व्यर्थ बात सुनेंगे और न (एक दूसरे को) झुठलाना।
Ayah : 36
جَزَآءٗ مِّن رَّبِّكَ عَطَآءً حِسَابٗا
यह तुम्हारे पालनहार की ओर से बदले में ऐसा प्रदान है जो पर्याप्त होगा।
Ayah : 37
رَّبِّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا ٱلرَّحۡمَٰنِۖ لَا يَمۡلِكُونَ مِنۡهُ خِطَابٗا
जो आकाशों और धरती तथा उनके बीच की हर चीज़ का पालनहार है, अत्यंत दयावान् है। उससे बात करने का उन्हें अधिकार नहीं होगा।
Ayah : 38
يَوۡمَ يَقُومُ ٱلرُّوحُ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ صَفّٗاۖ لَّا يَتَكَلَّمُونَ إِلَّا مَنۡ أَذِنَ لَهُ ٱلرَّحۡمَٰنُ وَقَالَ صَوَابٗا
जिस दिन रूह़ (जिबरील) तथा फ़रिश्ते पंक्तियों में खड़े होंगे, उससे केवल वही बात कर सकेगा जिसे रहमान (अल्लाह) आज्ञा देगा और वह ठीक बात कहेगा।
Ayah : 39
ذَٰلِكَ ٱلۡيَوۡمُ ٱلۡحَقُّۖ فَمَن شَآءَ ٱتَّخَذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ مَـَٔابًا
यही (वह) दिन है जो सत्य है। अतः जो चाहे अपने पालनहार की ओर लौटने की जगह (ठिकाना) बना ले।[5]
5. (37-39) इन आयतों में अल्लाह के न्यायालय में उपस्थिति (ह़ाज़िरी) का चित्र दिखाया गया है। और जो इस भ्रम में पड़े हैं कि उनके देवी-देवता आदि अभिस्ताव करेंगे उनको सावधान किया गया है कि उस दिन कोई बिना उस की आज्ञा के मुँह नहीं खोलेगा और अल्लाह की आज्ञा से अभिस्ताव भी करेगा तो उसी के लिए जो संसार में सत्य वचन "ला इलाहा इल्लल्लाह" को मानता हो। अल्लाह के द्रोही और सत्य के विरोधी किसी अभिस्ताव के योग्य नगीं होंगे।
Ayah : 40
إِنَّآ أَنذَرۡنَٰكُمۡ عَذَابٗا قَرِيبٗا يَوۡمَ يَنظُرُ ٱلۡمَرۡءُ مَا قَدَّمَتۡ يَدَاهُ وَيَقُولُ ٱلۡكَافِرُ يَٰلَيۡتَنِي كُنتُ تُرَٰبَۢا
निःसंदेह हमने तुम्हें एक निकट ही आने वाली यातना से डरा दिया है, जिस दिन मनुष्य देख लेगा, जो कुछ उसके दोनों हाथों ने आगे भेजा है, और काफिर कहेगा : ऐ काश कि मैं मिट्टी होता![6]
6. (40) बात को इस चेतावनी पर समाप्त किया गया है कि जिस दिन के आने की सूचना दी जा रही है, उस का आना सत्य है, उसे दूर न समझो। अब जिसका दिल चाहे इसे मानकर अपने पालनहार की ओर मार्ग बना ले। परंतु इस चेतावनी के होते जो इनकार करेगा, उसका किया-धरा सामने आएगा, तो पछता-पछता कर यह कामना करेगा कि मैं संसार में पैदा ही न होता। उस समय इस संसार के बारे में उसका यह विचार होगा जिसके प्रेम में आज वह परलोक से अंधा बना हुआ है।
Pengiriman sukses